सोमवार दिनांक 28.10.2024 को आने वाली है संवत् 2081 कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की–

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Samvat 2081 Kartik month Krishna Paksha is going to come on Monday 28.10.2024

 रमा एकादशी :-  कार्तिक महीने के कृष्णपक्ष में आने वाली एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। Rama Ekadashi:- The Ekadashi that falls in the Krishna Paksha of Kartik month is called Rama Ekadashi.

jammutimesnews: -ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण की उपासना करने और व्रत रखने से मनवांछित कामना पूरी होती है। रमा एकादशी को रम्भा एकादशी भी कहते हैं। इस दिन वासुदेव श्री कृष्ण के केशव रूप की उपासना की जाती है। कहते हैं कि इस दिन की पूजा से कान्हा से साक्षात्कार भी सम्भव हैं।
इस एकादशी का व्रत रखने से पापों का नाश तो होता ही है, साथ में महिलाओं को सुखद वैवाहिक जीवन का वरदान भी मिलता है।

एक नगर में मुचुकुन्द नाम के प्रतापी राजा थे। उनकी चन्द्रभागा नाम की एक पुत्री थी। राजा ने बेटी का विवाह राजा चन्द्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया। शोभन थोड़ा दुर्बल था। वह एक समय भी बिना खाएं नहीं रह सकता था।

शोभन एक बार कार्तिक के महीने में अपनी पत्नी के साथ अपने ससुराल आया था। तभी रमा एकादशी आ गई। चन्द्रभागा के गृह राज्य में सभी इस व्रत को रखते थे। शोभन को भी यह व्रत रखने के लिए कहा गया। किन्तु शोभन इस बात को लेकर चिन्तित हो गया कि वह तो एक पल को भी भूखा नहीं रह सकता। फिर वह रमा एकादशी का व्रत कैसे करेगा।jammutimesnews

यह चिन्ता लेकर वह अपनी पत्नी के पास गया और कुछ उपाय निकलने को कहा।
चन्द्रभागा ने कहा–‘अगर ऐसा है तो आपको राज्य से बाहर जाना होगा। क्योंकि राज्य में कोई भी ऐसा नहीं है, जो इस व्रत को ना करता हो। यहाँ तक की जानवर भी अन्न ग्रहण नहीं करते।’

लेकिन शोभन ने यह उपाय मानने से इन्कार कर दिया और उसने व्रत करने की ठान ली। अगले दिन सभी के साथ सोभन ने भी एकादशी का व्रत किया। लेकिन वह भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर सका और प्राण त्याग दिया।

चन्द्रभागा सती होना चाहती थी। मगर उसके पिता ने यह आदेश दिया कि वह ऐसा ना करे और भगवान विष्णु की कृपा पर भरोसा रखे।
चन्द्रभागा अपने पिता की आज्ञानुसार सती नहीं हुई। वह अपने पिता के घर रहकर एकादशी के व्रत करने लगी। Chandrabhaga wanted to commit Sati.

उधर रमा एकादशी के प्रभाव से सोभन को जल से निकाल लिया गया और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मन्दराचल पर्वत पर धन-धान्य से परिपूर्ण तथा शत्रु रहित देवपुर नाम का एक उत्तम नगर प्राप्त हुआ।

उसे वहाँ का राजा बना दिया गया। उसके महल में रत्न तथा स्वर्ण के खम्भे लगे हुए थे। राजा सोभन स्वर्ण तथा मणियों के सिंहासन पर सुन्दर वस्त्र तथा आभूषण धारण किए बैठा था।

गन्धर्व तथा अप्सराएँ नृत्य कर उसकी स्तुति कर रहे थे। उस समय राजा सोभन मानो दूसरा इन्द्र प्रतीत हो रहा था। उन्हीं दिनों मुचुकुन्द नगर में रहने वाला सोमशर्मा नाम का एक ब्राह्मण तीर्थयात्रा के लिए निकला हुआ था।

घूमते-घूमते वह सोभन के राज्य में जा पहुँचा, उसको देखा। वह ब्राह्मण उसको राजा का जमाई जानकर उसके निकट गया।

While roaming around, he reached Sobhan’s kingdom and saw him. The Brahmin considered him to be the king’s son-in-law and went near him.

राजा सोभन ब्राह्मण को देख आसन से उठ खड़ा हुआ और अपने ससुर तथा पत्नी चन्द्रभागा की कुशल क्षेम पूछने लगा। सोभन की बात सुन सोमशर्मा ने कहा। सोमशर्मा बोले–‘हे राजन! हमारे राजा कुशल से हैं तथा आपकी पत्नी चन्द्रभागा भी कुशल है। अब आप अपना वृत्तान्त बतलाइए।
आपने तो रमा एकादशी के दिन अन्न-जल ग्रहण न करने के कारण प्राण त्याग दिए थे।

मुझे बड़ा विस्मय हो रहा है कि ऐसा विचित्र और सुन्दर नगर जिसको न तो मैंने कभी सुना और न कभी देखा है, आपको किस प्रकार प्राप्त हुआ।’
सोभन ने कहा–‘हे देव! यह सब कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी के व्रत का फल है। इसी से मुझे यह अनुपम नगर प्राप्त हुआ है किन्तु यह अस्थिर है। सोभन की बात सुन ब्राह्मण बोला। सोमशर्मा ने कहा–‘हे राजन! यह अस्थिर क्यों है और स्थिर किस प्रकार हो सकता है, सों आप मुझे समझाइए। यदि इसे स्थिर करने के लिए मैं कुछ कर सका तो वह उपाय मैं अवश्य ही करूँगा।’ राजा सोभन ने कहा–‘हे ब्राह्मण देव! (King Sobhan said – ‘O Brahmin God!) मैंने वह व्रत विवश होकर तथा श्रद्धा रहित किया था। उसके प्रभाव से मुझे यह अस्थिर नगर प्राप्त हुआ परन्तु यदि तुम इस वृत्तान्त को राजा मुचुकुन्द की पुत्री चन्द्रभागा से कहोगे तो वह इसको स्थिर बना सकती है।’ राजा सोभन की बात सुन ब्राह्मण अपने नगर को लौट आया और उसने चन्द्रभागा से सारा वाक्या सुनाया। इस पर राजकन्या चन्द्रभागा बोली jammutimesnews

चन्द्रभागा ने कहा–‘हे ब्राह्मण! देव आप क्या वह सब दृश्य प्रत्यक्ष देखकर आए हैं या अपना स्वप्न कह रहे हैं।’ चन्द्रभागा की बात सुन ब्राह्मण बोला।
ब्राह्मण ने कहा–‘हे राजकन्या! मैंने तेरे पति सोभन तथा उसके नगर को प्रत्यक्ष देखा है किन्तु वह नगर अस्थिर है। तू कोई ऐसा उपाय कर जिससे कि वह स्थिर हो जाए।’ ब्राह्मण की बात सुन चन्द्रभागा बोली। चन्द्रभागा ने कहा–‘हे ब्राह्मण! देव आप मुझे उस नगर में ले चलिए मैं अपने पति को देखना चाहती हूँ। मैं अपने व्रत के प्रभाव से उस नगर को स्थिर बना दूँगी।’

चन्द्रभागा के वचनों को सुनकर वह ब्राह्मण उसे मन्दराचल पर्वत के पास वामदेव के आश्रम में ले गया। वामदेव ने उसकी कथा को सुनकर चन्द्रभागा का मन्त्रों से अभिषेक किया। चन्द्रभागा मन्त्रों तथा व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण करके पति के पास चली गई। सोभन ने अपनी पत्नी चन्द्रभागा को देखकर उसे प्रसन्नतापूर्वक आसन पर अपने पास बैठा लिया।

चन्द्रभागा ने कहा–‘हे स्वामी! अब आप मेरे पुण्य को सुनिए जब मैं अपने पिता के घर में आठ वर्ष की थी तब ही से मैं विधिवत एकादशी का व्रत कर रही हूँ। उन्हीं व्रतों के प्रभाव से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा और सभी कर्मों से परिपूर्ण होकर प्रलय के अन्त तक स्थिर रहेगा।’ चन्द्रभागा दिव्य स्वरूप धारण करके तथा दिव्य वस्त्रालंकारो से सजकर अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहने लगी।

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