Social work should not remain a mere show in the modern environment (World Social Work Day Special 18 March 2025)
दुनियाभर के महान समाज सुधारकों का नाम मन में आते ही, हम उनके प्रति सम्मान और श्रद्धा से भर जाते हैं, क्योंकि उन्होंने लोककल्याण हेतु अपार पीड़ा व कष्ट सहकर और कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए संघर्षपूर्ण जीवन जिया है, उन्होंने खुद की परवाह न करके लोगों के अधिकार, मानवता, समानता, एकता, समाज उत्थान के लिए वे जीवन के अंत तक प्रयासरत रहे, लोगों की समस्या और उनके दर्द को उन्होंने महसूस किया, उस दर्द को जिया हैं। ऊंच-नीच, जाति-भेद, लिंग-भेद, वर्णव्यवस्था, अन्याय, सामाजिक कुप्रथा जैसे अनेक बुराइयों को खत्म करने का बीड़ा उठाया। आज प्रत्येक व्यक्ति को हर प्रकार के जो अधिकार मिले है, यह उन समाजसुधारकों के मेहनत का फल हैं। जानवरों से भी बदतर हालात से गुजरने के बाद मानव ने यह स्थिति पायी हैं। अनादिकाल से भारत देश में सती प्रथा, देवदासी प्रथा, डायन शिकार की प्रथा, बाल विवाह व बहुपत्नी विवाह प्रथा, महिला जननांग विकृति प्रथा, छुआछूत, स्त्री भ्रूण हत्या जैसे भयावह प्रथाएं मौजूद सामान्य सामाजिक बुराइयां थीं। दहेज लड़कियों के माता-पिता के लिए चिंता का एक और प्रमुख कारण था, जिससे कन्या शिशु की हत्या का कारण भी बढ़ गया। स्त्री को शिक्षा से वंचित रखा जाता था, पितृसत्तात्मक व्यवस्था का वर्चस्व था। निम्न जाति वर्ग और महिलाओं को पशुओं से भी तुच्छ माना जाता था। सदियों से चलते आ रहे ऐसे कुप्रथाओं के जुल्मों सितम को महान समाज सुधारकों ने रोका। महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने देश में स्त्री शिक्षा की लौ प्रज्वलित की। भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने कर्मचारियों और महिलाओं को अधिकार, वंचितों को समानता का स्थान दिलवाया। पंडिता रमाबाई ने बाल विवाह रोकने और महिलाओं व विधवाओं के शिक्षा को मजबूत बनाया। राजा राममोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, भूदान प्रणेता विनोबा भावे, पेरियार ई. वी. रामासामी, कबीर, रविदास, ताराबाई शिंदे, रमाबाई रानाडे, फातिमा शेख, स्वर्णकुमारी देवी, सिस्टर निवेदिता, कादम्बिनी गांगुली, धोंडो केशव कर्वे, मदर टेरेसा, बाबा आमटे, सिंधुताई सपकाळ से लेकर वर्तमान के मेधा पाटकर, सुपर 30 के आनंद कुमार, कैलाश सत्यार्थी, इरोम शर्मिला, सोनम वांगचुक जैसे अनेक का नाम समाजकार्य के लिए प्रसिद्ध हैं। राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज, संत गाडगे बाबा जैसे अनेक संतों ने भी देश के सामाजिक विकास में अमूल्य योगदान दिया हैं। आज भी देश में कुछ गुमनाम समाजकार्यकर्ता अपने काम से मानवता और समाज को विकसित करने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर चुके हैं। अपने लिए तो हर कोई जीता है, लेकिन जो खुद से पहले औरों का विचार करें, निस्वार्थ भाव से लोगों के लिए जियें और खुद के प्रसिद्धि के लिए कभी ढिंढोरा नहीं पिटे, वही सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता कहलाते हैं। jammutimesnews
हर साल मार्च माह के तीसरे मंगलवार को “विश्व समाजकार्य दिवस” दुनियाभर में मनाया जाता हैं। इस साल विश्व सामाजिक कार्य दिवस 2025 की थीम है “स्थायी कल्याण के लिए अंतर-पीढ़ीगत एकजुटता को मजबूत करना”। यह थीम पीढ़ियों के बीच एक-दूसरे की देखभाल करने और सम्मान करने के महत्व पर प्रकाश डालती है। समाजकार्य जीवन में सद्भाव, समानता और मानव विकास कल्याण पर केंद्रित हैं। मनुष्य होने के नाते, समाज के प्रत्येक व्यक्ति में परोपकार की भावना होनी चाहिए। महान लोग अक्सर कहते थे कि निस्वार्थ भाव से समाजकार्य या लोगों की मदद करो, तो किसी को पता न चले, इस तरह करें, ताकि सेवा लेनेवाले को भी शर्मिंदगी या हिचक न महसूस हो और हम में भी अहंकार का निर्माण न हों। अच्छा कर्म करके भूल जाओ, हर धर्म और महापुरुषों ने भी यही सिख दी है, यहीं हमारे संस्कार भी होने चाहिए। अगर हम सक्षम है, चाहे तन, मन, धन या ज्ञान से हो, तो अवश्य हमें असहायों की अपनी क्षमता अनुरूप बिना किसी अपेक्षा के मदद करनी चाहिए। अच्छे कामों को हमेशा सराहना मिलनी चाहिए, ताकि अन्यों को भी प्रेरणा मिलें, लेकिन दिखावा बिल्कुल नहीं होना चाहिए। अतिसामान्य वयोवृद्ध गरीब ग्रामीण मजदूर माउंटेनमैन दशरथ मांझी ने अकेले 22 साल के अथक संघर्ष से पहाड़ काटकर लोगों के लिए मार्ग बनाया और इतिहास रच दिया। आर्थिक कमी से जूझते हुए उनका परिवार तंगहाली में जिया, लेकिन कभी किसी से अपेक्षा नहीं की। आज भी देश-दुनिया में अनेक ऐसे समाजसेवी है जो अतिसामान्य जीवन जीते है लेकिन उनके काम असमान्य होते है, भले ही बहुत से समाजसेवी आधुनिकता की चकाचौंध और प्रसिद्धि से दूर है लेकिन कभी-कभार इनके बारे में देखने-सुनने मिलता है तो बड़ा फक्र और सुकून महसूस होता हैं।
आज के समय में ईमानदारी से मेहनत का पैसा कमाकर असहायों का मददगार बड़ी मुश्किल से दिखाई पड़ता हैं। हमारे देश में चुनाव के वक्त नेताओं द्वारा लाखों-करोड़ों रुपया पानी की तरह बहा दिया जाता हैं, ताकि चुनाव जीतकर गरीब जनता की निस्वार्थ भाव से सेवा कर सकें, लोककल्याण के लिए अपना सर्वस्व त्यागने की बात करते है, नेताओं को दल बदलना है, तो भी लोककल्याण के लिए कर रहे, सत्ता का कोई लालच नहीं है ऐसा ही स्पष्टीकरण देते है, उनमें अच्छे कार्य का श्रेय लेने के लिए होड़ लगी रहती हैं। आज के आधुनिक परिवेश में देखा जाए तो हर क्षेत्र, हर ओर समाजसेवियों की बाढ़ सी आ गयी है। कोई भी व्यक्ति, कभी भी अपने नाम के साथ सामाजिक कार्यकर्ता शब्द जोड़ देता है और विविध कार्यक्रमों के दौरान गली-चौराहों में सामाजिक कार्यकर्ता के नाम से खूब बैनर-बोर्ड भी लगवा देते हैं। समाचारपत्रों में भी अक्सर लोग सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर संदेश छपवाते है, अभी तो सामाजिक कार्यकर्ताओं के रूप में नाबालिगों के भी चौराहों पर बैनर-बोर्ड और सोशल मीडिया पर फोटो नजर आते है। लोककल्याण के लिए निस्वार्थ कार्य करनेवाले सामाजिक कार्यकर्ता की जगह फोटो खींचनेवाले कार्यकर्ता ही कार्यकर्ता दिखाई दे रहे हैं।
समाज में रसूखदार और धनवानों का बहुत बड़ा वह वर्ग भी है, जो चैरिटी नहीं बल्कि दिखावे वाले इवेंट्स के नाम पर पैसा खर्च करना पसंद करते हैं, ताकि उसका नाम प्रसिद्ध हो जाये। समाजसेवा के नाम पर सस्ती प्रसिद्धि पाने का विचार लोगों में खूब नजर आता हैं। जरूरतमंद को थोडासा खाद्य, अनाज की किट, सामान या अन्य कोई भी मदद देकर फोटो निकालते या रील बनाकर, फिर उसे सोशल मीडिया पर खूब बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं। वैसे तो अधिकतम संस्थान, एनजीओ धनोपार्जन के केंद्र बने हुए है, फिर भी कुछ संस्थान आर्थिक तंगी से जूझते हुए भी सही अर्थों में समाजसेवा कार्य में लगे हुए हैं। अनाथ बच्चे, बेसहारा वृद्ध, कुंवारी माता, दिव्यांग, मानसिक रोगी, एचआईवी पीड़ित बालक, नशेड़ी, गंभीर रोगों से ग्रस्त मरीज जैसे अनेक जरूरतमंद का सहारा बनकर संस्थान उन्हें बेहतर जीवन जीने का मौका देती हैं। ये समाज जिन्हे अपनाने से मना करता है, अपने ही मरने के लिए छोड़ देते है, उन्हें ऐसे संस्थान निस्वार्थ भाव से अपनाते है, इसे ही समाजकार्य कहते हैं।

समय के साथ देश में सामाजिक समस्या लगातार चरम पर पहुंच रही हैं। आज भी देश के बहुत से पिछड़े ग्रामीण क्षेत्र अपने आधारभूत सुविधाओं से वंचित है, हर क्षेत्र में अपराध बढ़ रहा है। संस्कारहीन दुर्व्यवहार, धोखाधड़ी, मिलावटखोरी, भ्रष्टाचार, नशाखोरी, भाई-भतीजावाद, आर्थिक असमानता, स्वार्थवृत्ती, लालच, ईर्ष्याभाव हर ओर नजर आता हैं। समाजसेवा के तौर पर श्रमदान के लिए बुलाओं तो लोग दूर भागते है, लेकिन प्रसिद्धि और फायदे के लिए टूट पड़ते हैं। शहर में वृद्धाश्रम की संख्या लगातार बढ़ रही है, घरेलू कलह और रिश्तों में खटास बढ़ रही हैं। सामाजिक कार्यकर्ता या समाजसेवी जीवन के बहुत बड़े त्याग का नाम हैं। पर्यावरण, पशु-पक्षी, वन्यजीवों, लोगों के लिए मन से अच्छा काम करें तो आप अपनेआप ही सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में ढल जायेंगे। आदर्शात्मक समाजसेवियों की मजबूत नींव की आज जरूरत है ताकि आनेवाली पीढ़ी वह आदर्श लेकर पथ प्रदर्शक की भूमिका बखूबी निभा सकें। अगर सभी सामाजिक कार्यकर्ता, समाजसेवी या हम लोग भी समाज की समस्याओं की गंभीरता को जानकर अपनी क्षमता अनुरूप जागरूकता और निस्वार्थ सेवा करने लगे तो देश से हर तरह की समस्या का नाश हो सकता हैं।