jammutimesnews: कूष्माण्डा देवी की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है और इस दिन को “चतुर्थी नवरात्रि” भी कहा जाता है। कूष्माण्डा देवी को दुर्गा के रूप में जाना जाता है यह रूप देवी दुर्गा के नौ रूपों में एक हैं। क्योंकि उनके विभिन्न रूपों में से एक रूप ने एक भिक्षुक को विशेष भिक्षा दी थी। कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इनका निवासस्थान सूर्य मण्डल के भीतर लोक में है। सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल कूष्माण्डा देवी में ही है। कूष्माण्डा देवी का ध्यान करने से भक्त को सार्थक जीवन मिलता है और उनके समस्त कष्टों का नाश होता है। हम कूष्माण्डा देवी के जीवन और उनके महत्वपूर्ण रूपों, पूजा विधि, व्रत, मंत्र और उनके पर्व के बारे में विस्तार से जानेंगे।
मां कूष्मांडा: माना जाता है कि सच्चे मन से मां की पूजा करते हैं, उन्हें आसानी से अपने जीवन में परम पद की प्राप्ति होती है। यह भी माना जाता है कि मां की पूजा से भक्तों के समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं।
ऐसा है मां का स्वरूप
मां कूष्मांडा को अष्टभुजाओं वाली देवी भी कहा जाता है। उनकी भुजाओं में बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल सजे हैं। वहीं दूसरी भुजा में वह सिद्धियों और निधियों से युक्त माला धारण किए हुए हैं। मां कूष्मांडा की सवारी सिंह है।
पूजा में मां को लाल रंग का पुष्प, गुड़हल, या फिर गुलाब अर्पित करें। इसके साथ ही सिंदूर, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाएं। मां की पूजा आप हरे रंग के वस्त्र पहनकर करें तो अधिक शुभ माना जाता है। इससे आपके समस्त दुख दूर होते हैं।