हिंदी बोले तो : Dr. Shyam Preeti

0
127

हिंदी… सबको प्रिय है.. क्षमा करें… वह फिल्मी होनी चाहिए…! लेकिन हिंदी फिल्मों में ज्यादातर संवाद बोले तो डायलॉग हिंदी में नहीं लिखे जाते… रोमन या अंग्रेजी में लिखे जाते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें हिंदी बोलने में ‘लज्जा’ नहीं आती.. उन्हें इसमें पिछड़ेपन की गंध आती है…! इसके बावजूद हिंदी का आसमान फैलता जा रहा है… आकाशगंगा का विस्तार हो रहा है… यह हम हिंदुस्तानियों के लिए गर्व का विषय है… जिसे हमें पढ़ना और लिखना नहीं केवल महसूस करना है। मैं तो महसूस कर रहा हूं… आप कर सकते हैं तो करेें नहीं तो आप भी बुद्धिजीवी की जमात में शामिल होकर हिंदी दिवस मनाएं। हम तो ऐसे ही हैं भइया..! हमारी नजर, निगाहों या विजन से हिंदी को देखेंगे तो… हिंदी बोले तो #1EKBharat (एकभारत) है…! और भारत का यही सबसे बड़ा विचार भी है।

आइए… आम आदमी के मुताबिक, इसे तर्कों की कसौटी पर कसते हैं। कसौटी पर कसना #1EK मुहावरा है, जिसका अर्थ होता है- अच्छी तरह से परखना। मित्रवर, हमारा विचार तनिक दूसरों से जुदा रहा है और हमेशा रहता है। हम कुछ जरा कुछ हटके हैं… आप चाहे तो हमेें बुड़बक कह सकते हैं… ईडियट कह सकते हैं या जो आपके मन में आए… बकबक कर अपने दिमाग को हलका करने के लिए आप स्वतंत्र हैं। वैसे तो हम 75 साल पहले स्वतंत्र हो गए थे लेकिन हकीकत यही है कि हम आज भी गुलाम है… भाषा की शुद्धता को लेकर बुद्धिजीवियों से मिलो तो आप भी धन्य हो जाएंगे। मेरे पास एक शरीर है और उसमें एक छोटा सा दिमाग, जिसे कुछ लोग मसि्तष्क भी कहते हैं और पढ़े-लिखे उसे ब्रेन और गांव वाले माइंडवा कहते हैं, में फितूर बहुत आते हैं और उन्हें आम लोग समझते भी खूब हैं पर क्या करें, बड़े लोग उन तर्कों को समझना नहीं चाहते। पहले #1EK आम आदमी की बात… आम आदमी कौन… यहां पर पार्टी विशेष की बात से परहेज करें.. क्योंकि राजनीति करनी हमें आती नहीं…. सीखने की कोशिश कर रहा हूं पर… आम आदमी ठहरा… जरा सा लॉलीपप दिखता है तो पिछली बातों को भूल जाता हूं। सर, आम आदमी बोले तो जिसे पढ़े-लिखे लोग कॉमन मैन कहते हैं..। #1EK आम आदमी या कॉमन मैन की कद्र कोई नहीं करता जबकि यही सच है कि वही आम आदमी या कॉमन मैन के बलबूते हर सेलिब्रिटी या कोई ब्रांड सफलता की सीढ़ियां चढ़ता है। सर, हर शगुन में #1EK बोले तो #एक का क्या महत्व है, यह सभी जानते हैं परंतु आज के दौर में एक रुपए की या एक कॉमन मैन की वैल्यू क्या है, यह कहीं पर भी देखा जा सकता है। अब मुद्दे की बात…. जब कॉमन मैन… एकजुट होता है तो #1EK अनेक हो जाता है और यह ताकत किसी को भी हरा सकती है।

हिंदी के साथ भी यही है…। आज हिंदी का वर्चस्व लगातार बढ़ता जा रहा है। यह करोड़ों का कारोबार कर रही है… बिकाऊ है सो… हिंदी दिवस मनाया जा रहा है… हिंदी पर सेमिनार आयोजित हो रहे हैं… सब चिल्ला रहे हैं… हिंदी हैं हम वतन हैं… पर दिल से इसे कितने मानते हैं…? यह सवाल बड़ा मौजूं है। पहले जानेें… कि हिंदी क्या है? हिंदी विश्व की #1EK प्रमुख भाषा है एवं भारत की #1EK राजभाषा है पर यह भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत के संविधान में किसी भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया है। लेकिन.. जनाब… हुजूर… सर, मोहतरमा… मैडम… जो संबोधन आपको पसंद हो… हिंदी तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है… हिंदी सारे हिंदुस्तान को जोड़ती है… भारत जोड़ो… को हम #1EKBharat (एकभारत) कह सकते हैं। यह मेरा विचार है… यदि आपके मन को भाए तो कृपया… प्लीज… अन्य भारतीयों तक आगे बढ़ाएं… आपका आभारी रहूंगा। भारत विविधता भरा मुल्क है… हिंदी भी जगह के हिसाब से अपने रूप बदल लेती है लेकिन हिंदी हम सबको जोड़ती है और हम हिंदी की वजह से आपस मेें सहोदर बन जाते हैं। पिछले दिनों की एक बात याद आती है… सो शेयर करता हूं। टोक्यो ओलंपिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज सफलता के बाद सेलिब्रिटी बन गए। उनका #1EK वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें अंग्रेजी के सवालोंपर वह एंकर से फरमाते हैं- भाई हिंदी में पूछ लो…। सच में यह लाजवाब था.. हिंदी को उन्होंने माथे पर लगाया था पर अंग्रेजी को भी उन्होंने सम्मान दिया था। यही है भाषा की ताकत। आज अंग्रेजी की ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में 900 से ज्यादा हिंदी के शब्द शामिल किए जा चुके हैं और हिंदी भाषा के विद्वान हिंदी को शुद्धता के चक्कर में उलझाकर उसको दोयम दर्जे का साबित कर… गर्व के साथ हिंदी दिवस मनाते हैं। जहां तक हिंदी शब्दावली की बात करें तो इसमें मुख्यतः चार वर्ग हैं। तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी… यानी हिंदी में सब कोई समाहित है। तत्सम बोले तो वे संस्कृत शब्द, जिनसे विसर्ग का लोप हो। तद्भव अर्थात वे शब्द जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, पर बदल गए। देशज… में बोलचाल वाला .. स्व निर्मित और विदेशी.. बोले तो … इतना भी नहीं समझते। जब सब हिंदी में शामिल हैं… फिर शुद्धता के नाम पर हिंदी को काहे अछूत बनाने का प्रयास किया जाता है। इसे दूसरे शब्दों में समझे तो हर भाषा अपने आप में श्रेष्ठ है पर काल, परिस्थिति और जगह के हिसाब से अपना रूप बदल लेती है लेकिन खुद को श्रेष्ठ समझने वाले चंद लोग, अपनी विद्वता झाड़ने के लिए शब्दों के साथ भी खेलते हैं। मेरे लिहाज से यह उचित नहीं है… बाकी पंचन की राय जो हो… कृपया बताएं जरूर.. चुप न रहें काहे… इस अभियान को आंदोलन बनाना है… यदि आप साथ दें तो बनेगा भी। Dr. Shyam Preeti

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here