एक छोटी-सी संख्या, जो ब्रह्मांड से भी विशाल है
एक अलौकिक उत्सव की शुरुआत होती है, जब कैलेंडर 14 मार्च को ठहरता है—एक दिन जो गणित के सबसे रहस्यमयी और जादुई नायक, π (पाई), को नमन करता है। यह महज़ एक तारीख नहीं, बल्कि उस अनंतता का रंगारंग जश्न है, जिसने सहस्राब्दियों से मानव मस्तिष्क को हैरत में डाला है। π कोई साधारण संख्या नहीं—यह तो एक जीवंत सूत्र है, ब्रह्मांड की सिम्फनी में गूँजती वह अनश्वर धुन, जो हमारे जीवन के हर पहलू को अनायास ही सँवार देती है। प्रकृति के गहन रहस्यों को खोलने वाली यह चाबी विज्ञान को नई ऊँचाइयाँ देती है और रोज़मर्रा की छोटी-छोटी चीज़ों में भी अपनी चमक बिखेरती है। इस अनोखे मौके पर π की उस अनंत दुनिया में कदम रखें—जहाँ संख्याएँ नृत्य करती हैं, जिज्ञासा की कोई सीमा नहीं होती, और हर कदम पर एक नया रोमांच इंतज़ार करता है।
π कोई साधारण अंक नहीं, बल्कि एक गणितीय चमत्कार है—3.141592653…—जो अनंत तक फैलता है, बिना रुके, बिना थके। इसके दशमलव अंकों का सिलसिला ऐसा है मानो कोई अनंत काव्य, जिसमें न तुकबंदी है, न दोहराव। यह हर वृत्त की आत्मा है—चाहे वह सूर्य का विशाल गोला हो, चंद्रमा की शीतल गोलाई हो, या आपके हाथ में थमा एक सिक्का—हर जगह यह परिधि और व्यास के बीच के उस शाश्वत संतुलन को रचता है। इतिहास के धूमिल पन्नों में झाँकें, तो प्राचीन मिस्र और बेबीलोन के गणकों से लेकर यूनानी मनीषी आर्किमिडीज तक, सभी इसके जादू से बँधे नज़र आते हैं। भारत के गणितज्ञ आर्यभट्ट और माधव ने इसे और परिष्कृत कर एक नया आयाम दिया। कभी हाथ से लिखे कागज़ों पर लाखों अंकों तक गणना हुई, और आज सुपरकंप्यूटर खरबों अंकों तक इसके रहस्य को खंगाल चुके हैं—फिर भी π का अंत एक अनबुझी पहेली बना हुआ है। यह अनंतता का वह प्रतीक है जो मानव कौतूहल को ललकारता है और कहता है—आगे बढ़ो, और जानो!
लेकिन क्या π सिर्फ गणितज्ञों का खिलौना है? नहीं, यह उससे कहीं विशाल है। यह वह अदृश्य शक्ति है जो अंतरिक्ष की गहराइयों में ग्रहों की कक्षाओं को नापती है, अंतरिक्ष यानों को उनकी मंजिल तक पहुँचाती है। नासा हो या स्पेसएक्स, इनके हर अभियान में π एक नन्हा सितारा बनकर चमकता है। इंजीनियरिंग की दुनिया में यह विशाल पुलों, गहरी सुरंगों और ऊँची अट्टालिकाओं को आकार देता है। तकनीक के जादूगर—जीपीएस, सैटेलाइट, और आपके स्मार्टफोन की स्क्रीन—सब इसके बिना अधूरे हैं। चिकित्सा विज्ञान में भी यह कमाल दिखाता है—एमआरआई की जटिल गणनाओं से लेकर मानव शरीर के बायोमेट्रिक विश्लेषण तक, π हर कदम पर साथ देता है। यह एक ऐसी शक्ति है जो विज्ञान की नींव को मज़बूत करती है और मानव सभ्यता को प्रगति के पथ पर ले जाती है।
14 मार्च को π दिवस क्यों? क्योंकि यह तारीख इसके पहले तीन अंकों—3.14—से एक सुंदर संयोग बनाती है। 1988 में भौतिक विज्ञानी लैरी शॉ ने इस उत्सव की नींव रखी, और तब से यह दिन गणित के प्रति प्रेम और विज्ञान के प्रति उत्साह का परचम लहराता है। दुनिया भर में इसे अनोखे अंदाज़ में मनाया जाता है—अमेरिका में “पाई खाने” की मस्ती होती है, जहाँ “Pie” और π का स्वादिष्ट संगम देखने को मिलता है। गणितीय पहेलियों का दौर, π के अंकों को याद करने की रोमांचक होड़ (70,000 से अधिक अंकों का रिकॉर्ड अब तक कायम है!), और विज्ञान के चमत्कारिक प्रयोग इस दिन को जीवंत बनाते हैं। यह सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है—जिज्ञासा को जागृत करने और ज्ञान की सीमाओं को तोड़ने की।
अब एक पल को ठहरें और सोचें—क्या π आपके जीवन को छूता है? जवाब है—हर पल, हर क्षण! सुबह की घड़ी का गोल चेहरा, कार के पहियों की लय, संगीत की मधुर तरंगें, या दोस्तों को भेजी गई लोकेशन—हर जगह π की छाप है। प्रकृति में भी यह कम जादुई नहीं—फूलों की पंखुड़ियों का घुमाव, नदियों की बलखाती चाल, और यहाँ तक कि आकाशगंगा की संरचना में भी π की गूँज सुनाई देती है। यह सिर्फ एक संख्या नहीं, बल्कि वह सूत्र है जो हमारी सृष्टि को एक अद्भुत सामंजस्य में बाँधे रखता है।
π एक अलौकिक चमत्कार है—अनंत, रहस्यमयी और सर्वव्यापी। यह गणित की धड़कन है, विज्ञान का आधार है, और ब्रह्मांड की गीतिका है। यह हमें सिखाता है कि कुछ रहस्य अनंत हो सकते हैं, और यही उनकी असली ताकत है। तो इस 14 मार्च को आइए, इस गणितीय महोत्सव में डूब जाएँ। π को नमन करें, विज्ञान की अनंत संभावनाओं को अपनाएँ, और उस अनश्वर जिज्ञासा का उत्सव मनाएँ जो हमें हर दिन नई ऊँचाइयों तक ले जाती है। क्योंकि π सिर्फ एक संख्या नहीं—यह अनंतता का वह दर्पण है जिसमें हमारी खोजों का अक्स झलकता है।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)